Thursday, 24 September 2020

Me sajda karun ya dil ko sanbhalun

मै सजदा करू या के दिल को संभालू 

के आका की चौखट नजर आ रही है , 

इसी बेखुदी में कही खो न जावु 

तड़प नूर वाले की तडपा रही है . 


दो आलम के दाता मेरे सामने है , 

के काबे का काबा मेरे सामने है , 

अदा क्यों न फर्जे मोहबत्त करू मै , 

खुदा की खुदाई जुकी जा रही है . 


गले में है जुल्फे तो नीची निगाहें , 

नज़र चूमती है मदीने की राहे , 

फ़रिश्ते भी बढ़कर कदम चूमते है ,

 मुहम्मद की जोगन चली आ रही है , 


फकीरी का मुजमे नहीं है सलीका , 

न आता है कुछ माँगने का तरीका , 

इधर भी निगाहें करम नूर वाले 

ज़माने की जोली भरी जा रही है . 


फरिश्तो रहे राह आँखे बिछा दो 

उठो बहरे ताजीम सरको जुका दो , 

खुदा कह रहा है मेरे मुस्तफा की , 

वो देखो सवारी चली आ रही है . 


ये फरमाया हक़ ने के प्यारे मुहम्मद 

हमारे हो तुम हम तुम्हारे मुहम्मद , 

हमें अपने जलवो में एकमली वाले 

तुम्हारी ही सूरत नजर आ रही है . 


ये जज़्बा मोहब्बत है रहमत खुदा की

 है चौखट मेरे सामने मुस्तफा की , 

मुझे क्यों न हो नाज़ किस्मत पे मुस्लिम

 मुहब्बत कहा की कहा ला रही है .

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